Category : Hindi Poem

सलामी नहीं  कुर्बानी 



यह तिरंगा आपकी सलामी नहीं कुर्बानी मांगता है,
पूछता है, बेहोश इस देश में कोई तो होगा जो जगाता है?

तुम चाहे ट्विटर पे चिल्लाओ,
या फिर कोई भी DP लगाओ ,
ये बचकानी बातें छोड़ो और,
दिल मे देशभक्ति की आग लगाओ,

आज जयहिंद बोलनेवाला मुफ़लिस कल कोई और मोड़ लेगा, 
जेबमे कुछ पैसे या सत्ता पाने पर वह देशभक्तिका नशा छोड़ देगा,
यह बुज़दिलों का देश है, खुदगर्ज़ी के लिए ये कुछ भी तौल देगा,
कुर्सी या खुदकी तरक्की के लिए ये अपनी माँ का भी मनचाहा मोल लेगा, 

यह तिरंगा आपकी सलामी नहीं कुर्बानी मांगता है,
पूछता है, बेहोश इस देश में कोई तो होगा जो जगाता है?

अगर देश का हर एक नौजवान अपने गर्म लहुमे चिंगारी दागता है, 
फिर देखो तुम, ये राजनैतिक भेड़िया और उसका भ्रष्टाचार कैसे भागता है,

सबकुछ मुमकिन है जो आज यह जान लो तुम,
अब और नहीं सहना है यह बात आज अगर ठान लो तुम, 

सारे विश्व पर भारत का शीतल साया होगा, 
हर एक जर्रा इसकी तेजकिरनो से नहाया होगा, 
उस शौर्य, शांति और समृद्धि में ना कोई अपना ना पराया होगा,

तब हमें बोलने की जरूरत नहीं, लोग खुद ही कहेंगे,
कैसे होगी वह पवन भूमि जिसने यहां जन्म पाया होगा, 

सिर्फ राजनेताओं को कोसने  क्या हासिल होगा, 
देश तो तभी बढ़ेगा जब इसका हर एक नागरिक काबिल होगा,

यह तिरंगा आपकी सलामी नहीं कुर्बानी मांगता है 
पूछता है, बेहोश इस देश में कोई तो होगा जो जगाता है?



Category : Hindi Poem

सल्लु और गोदी भैया



( राधे-राधे से राम-राम तक )

Disclaimer

यह व्यंग रचना काल्पनिक घटनाओ पर आधारित है।  इसका किसीभी जीवित और मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। यहाँ निदर्शित मानव चरित्र यदि आप के किसीभी पूज्य देवपुरुष से मिलता जान पड़े तो इसे केवल एक संयोग मात्र समझे और ज्यादा दिमाग मत चलाये। 😉

चेतावनी

कविता का शीर्षक पढ़ते ही यदि आप के दिल में ( सभी मन्युष्योमें में दिमाग का होना आवश्यक नहीं ) खलबली मचे तो आगे मत पढ़े।  व्यंग रचना पढ़ने के बाद यदि आपका दिमाग चलने लगे और आपकी आपके इष्टदेव से जुडी भ्रान्ति नष्ट हो जाये, जिससे आपको आपके मूढ़ भूतकाल पर शर्म आए और अपनी बचकानी सोच पर घृणा उत्पन्न हो तो तुरंत इलाज करवाए । कृपया सावधानी बरते क्योंकि दिमागका सही इस्तेमाल करना सबके बस की बात नहीं। 😉



सल्लु और गोदी भैया
( राधे-राधे से राम-राम तक )

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एक शर्ट फाड़ के दिखाता है दूसरा शब्द चुन चुन के घूमता है,
मतलब कुछ नहीं लेकिन पब्लिक को मज़ा बहुत आता है,

एक मूवी में, एक टीवी पे, वही घिसीपिटी कहानी दोहराता है,
पता नहीं एक बार बार प्रेम और एक पीएम कैसे बन जाता है,

एक फुटपाथ पर गाड़ी चलाता है दूसरा देश खड्डे में गिरता है,
देखो भाईओ बीवी बिन आदमी ऐसे ही बिग बोस बन जाता है,

इनको जो सलाम ना ठोके वह कहीं भी टिक नहीं पाता है,
दोनोंही कितने घमंडी है यह देखते ही पता चल जाता है,

बिना दिमाग की मूवी और जनमन से महत्तम दुरी का वादा है,
आवारा दोनों का बेतुकी और दीवानेपन से जनमों का नाता है,

शिकार और सरकार का खेल दोनों के मनको लुभाता है,
इनके करतब देख मूढ़मति तो बस भक्त बन जाता है,

कहिये, सल्लु और गोदी भैया का किस्सा क्या बतलाता है?
भैया इस देश में सदियों से कोई दिमाग नहीं चलाता है।



चूँकि इस व्यंग रचना में सल्लु और गोदी भैया जैसे महानुभावो का ज़िक्र किया गया है, इसका कदापि यह मतलब नहीं है की भारतबर्ष की  जनताको  बुद्धिहीन बनानेमें इनका कोई दोष है। इससे विपरीत, ऐसे व्यक्तिओं का लोगोके दिलो (यहाँ दिमाग की बात करना उचित नहीं ) पर छा जाना ही यह प्रमाण है की अधिकांश जनता बुद्धिहीन है। व्यक्ति पूजा यहाँ के जनमानस का ऐसा दूषण है की स्वयं भगवान भी इन बुज़दिलो से इस मामलेमें बहस करने की भूल से भी चेष्टा न करेंगे।  यह दो महाशय अपने क्षेत्र से जुडी हुई इसी बेवकूफी का उत्कृष्ट उदाहरण है।

गोदीजी अपने आप को जनता का प्रधान सेवक बतलाते है। यद्यपि एक सेवक के क्या गुण होने चाहिए इससे यह महाशय अभी पूर्णतः अवगत नहीं लगते।  एक अच्छा सेवक पहले तो अपने मालिक की बात ध्यान लगाकर सुनता है, फिर उसे समझने का प्रयास करता है और अंत में पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्य का पालन करने का प्रयास करता है। जनतंत्र ( Democracy ) में जनता मालिक है और चुने हुए नेतागण कार्यवाहक है।  उल्टा यहाँ तो जनता की बात को सुनना तो दूर यह महाशय अपने मन की बातों को सुनाने में लगे रहते है। इनके भक्तगण मानते है की इस अवतारपुरुष से पहले इस भूखंड का अस्तित्व ही नहीं था। यदि कोई देश झूठ की प्रतिष्ठा अपने सर्वोच्च स्थान पर करे तो उस देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य की गति का अनुमान करना कठिन नहीं होगा।  

एक खूबसूरत अभिनेता देश के कानून से परे होता है इसका जीताजागता सबूत है हमारे प्यारे सल्लु मिया।  जब भी कोई शो में जाते है, मंदबुध्दि बालक-बालिकाएं इनको आलिंगन में लेना चाहती है। जहा इन्हे हथकड़ी पहनानेकी पुलिस की हिम्मत नहीं तो प्यारे बच्चों का क्या कसूर।  इनके आशक युवक हाथ में एक विचित्र तावीज पहनते है जो इतना बड़ा होता है की आसानी से गले का हार बन सके।  लेकिन जहा यह खड़े होते है वहां दिमाग लगाना वर्जित माना जाता है।  वैसे तो जब युवतियां किसी पर मोहित हो जाती है तो फिर कभी अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल नहीं करती, फिर भी कुछ कुमारिकाये इनका “कैरेक्टर ढीला” जान अपना ऐश्वर्य बचाने में सफल हुई है। लेकिन अगर कोई इनके कैफ में घुल गई तो फिर उनके लिए ‘टाइगर’ का ख्वाब हमेशा ज़िंदा रहता है। वैसे तो जिनकी ट्यूबलाइट जली नहीं होती वही इनके चरणस्पर्श करने को उन्मादित होते है पर मेरे कुछ मित्रो से मुझे डांट न खानी पड़े इसलिए इस विषय पर में कुछ अपवाद की गुंजाईश रखता हूँ। 

इन दोनों महाशयों का इस देश की जनता की बेवकूफि और मंदबुध्दि पर अटूट विश्वास है। मालिक कुछ भी फेंके, कुत्ता उसे पकड़ ही लेता है, ऐसे ही आप भी ‘अच्छे दिन’की हड्डी को चबाते जाएं और कमज़ोर फिल्मों पर सैंकड़ों करोड़ लुटाएं जाए।  पहले चेतावनी दे चूका हूँ की दिमाग चलाना सबके बस की बात नहीं है और इसी बजह से यह आप पे लदा हुआ क़र्ज़ है, कृपया इसे ईमानदारी से भरे। 😉



Category : Hindi Poem

Khud Ke Saath Rahekar Bhi



खुद के साथ रहकरभी,  ना खुद ही को पहचाना,
शायद इसे ही कहते है, अंधे को आइना दिखाना,

फिक्र शराबकी करनीथी, आप देखते रहे पयमाना,
सोचते रहे हरदम,  की  क्या  सोचेगा  ये ज़माना,

कौन जीता कौन हारा, किसको क्या है अब दिखाना,
आखिर  खुद  को खुद  ही के साथ है जब  आज़माना,

वही  जानता  है,  क्या  खोना  है  और  क्या है पाना,
जिस  बंदेने  खुदा  को  खुदसे  ना  कभी  जुदा  जाना,

देखो आज  सब  लोग  गुनगुना  रहे  है  उसीका  तराना,
दीवाना   समज़कर   जिसको   भूल   चूका  था  ज़माना,

लोग  तो  चाहेंगे आपसे,  एक गुमनाम ज़िन्दगीमें ढल जाना,
बड़ा ही मुश्किल होता है, अपनी एक अलग पहचान बनाना,

शिकायत मत करना हृषी, आपको किसीने क्यों नहीं पहचाना?
आप तो बाहर जाते नहीं,  और  मना  है  सबका  भीतर आना !



Who I am, is the most intriguing question and the one who seeks to find the answer with dedication, usually attains the happiness. Why? Because most outward looking journeys are futile without destination. Only moving inward can help solve the puzzle.

Funny reality of human life is that men waste it seeking wealth & power, and women in preserving the look. Then both fails eventually. The more one stokes this fire, the more miserable existence gets. Eventually we get depressed, annoying, unsatisfied bunch of insipid bodies, devoid of any vitality.

There is nothing wrong in striving for the best but not being aware is the problem! Alas! The awareness indeed 😉

Category : Hindi Poem

Wahi Log Aksar



वही  लोग  अक्सर  गुजरे  कल  को याद  कर रोते  है,
जो   आज   से   अंजान  होकर   बेख़बरिसे  सोते   है,

कुछ उम्मीदे,  कुछ यादे,  काफी इरादे और बहोत से वादे,
क्या भुलाये किसे निभाए, इसी उलझनमे ज़िन्दगी खोते है,

अक्सर  मैंने  ये  देखा  है,   वही  डरते  है  मोत  से,
जो  जिंदगी  जीते है  ऐसे, के  जैसे पल पल मरते है,

जिसने कभी सोचा ही नहीं, क्या है मकसद जिंदगीका,
वही आज मौत को देखकर देखो कितने सवाल पूछते है,

ताउम्र  जिसने   कभी   पूछा   ही  नहीं  खुद का पता,
आज  वो  पागलो  की  तरह  खुदा  का  घर  ढूंढते  है,

फैसला  तो  तय था  जब  आप  ने ली थी पहली सांस,
फिरभी  आप  किसकी हार और किसकी जीत पूछते है,

एक  सच  ही  तो  था  पहले  और  सच  ही  रहेगा सदा,
तो फिर चलो आज उसी सच को  और क़रीबसे देखते  है |



Looking for everything at the eleventh hour is human nature, isn’t it?  People passing entire life in comatose state of existence is nothing new. Being aware is rare indeed. When you hear the word ‘bored’, translate it as, ‘at their wit’s end’ and now the ‘life’ within that ‘living organism’ has already been depleted or about to be depleted soon. If one is constantly waxed by the question that what to do next, then probability is high that the person has more life at disposal then deserves!

Life is joy, the sooner one realizes, the better. And then we will see how to get that joy later 😉

Category : Hindi Poem

Ek Ummid



जूझते  हुए  जब भी  ये जिंदगी वक्त  से  हार जाती  है,
बुलंद  हौसलों  पर आखिर, जैसे  तक़दीर  मुस्कुराती  है,

इन  चरागोकि रोशिनी को  तो कभी  बुझा नहीं पाती है,
ये  शाम  आखिर   हररोज़  सूरज  को  कैसे   छुपाती  है?!

एक  एक  बून्द पानी की   देखो  कैसे  बिखर जाती है,
जब एकजुट हो जाती है, तभी तो  बारिश कहलाती  है,

इस   शहरके   लोगोने   जैसे   अब  जीना   छोड़  दिया,
जिस्म में अब रूह नहीं, सिर्फ साँसे  आती और जाती है,

एक  उम्मीद  ही   है  जो  आसमान को  छू  जाती  है,
हकीकत   यहाँ   जमींन   से  कभी   उठ  नहीं  पाती  है



Struggle is at every step. But I believe that struggle is the strainer to separate sapless and let someone with strength to succeed. You may ask, what is success anyway?
My definition is,
Ability to have  genuine smile in any situation is true success against all odds.
Be Sthitpragnya 😉