( राधे-राधे से राम-राम तक )
Disclaimer
यह व्यंग रचना काल्पनिक घटनाओ पर आधारित है। इसका किसीभी जीवित और मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। यहाँ निदर्शित मानव चरित्र यदि आप के किसीभी पूज्य देवपुरुष से मिलता जान पड़े तो इसे केवल एक संयोग मात्र समझे और ज्यादा दिमाग मत चलाये। 😉
चेतावनी
कविता का शीर्षक पढ़ते ही यदि आप के दिल में ( सभी मन्युष्योमें में दिमाग का होना आवश्यक नहीं ) खलबली मचे तो आगे मत पढ़े। व्यंग रचना पढ़ने के बाद यदि आपका दिमाग चलने लगे और आपकी आपके इष्टदेव से जुडी भ्रान्ति नष्ट हो जाये, जिससे आपको आपके मूढ़ भूतकाल पर शर्म आए और अपनी बचकानी सोच पर घृणा उत्पन्न हो तो तुरंत इलाज करवाए । कृपया सावधानी बरते क्योंकि दिमागका सही इस्तेमाल करना सबके बस की बात नहीं। 😉
सल्लु और गोदी भैया
( राधे-राधे से राम-राम तक )
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एक शर्ट फाड़ के दिखाता है दूसरा शब्द चुन चुन के घूमता है,
मतलब कुछ नहीं लेकिन पब्लिक को मज़ा बहुत आता है,
एक मूवी में, एक टीवी पे, वही घिसीपिटी कहानी दोहराता है,
पता नहीं एक बार बार प्रेम और एक पीएम कैसे बन जाता है,
एक फुटपाथ पर गाड़ी चलाता है दूसरा देश खड्डे में गिरता है,
देखो भाईओ बीवी बिन आदमी ऐसे ही बिग बोस बन जाता है,
इनको जो सलाम ना ठोके वह कहीं भी टिक नहीं पाता है,
दोनोंही कितने घमंडी है यह देखते ही पता चल जाता है,
बिना दिमाग की मूवी और जनमन से महत्तम दुरी का वादा है,
आवारा दोनों का बेतुकी और दीवानेपन से जनमों का नाता है,
शिकार और सरकार का खेल दोनों के मनको लुभाता है,
इनके करतब देख मूढ़मति तो बस भक्त बन जाता है,
कहिये, सल्लु और गोदी भैया का किस्सा क्या बतलाता है?
भैया इस देश में सदियों से कोई दिमाग नहीं चलाता है।
चूँकि इस व्यंग रचना में सल्लु और गोदी भैया जैसे महानुभावो का ज़िक्र किया गया है, इसका कदापि यह मतलब नहीं है की भारतबर्ष की जनताको बुद्धिहीन बनानेमें इनका कोई दोष है। इससे विपरीत, ऐसे व्यक्तिओं का लोगोके दिलो (यहाँ दिमाग की बात करना उचित नहीं ) पर छा जाना ही यह प्रमाण है की अधिकांश जनता बुद्धिहीन है। व्यक्ति पूजा यहाँ के जनमानस का ऐसा दूषण है की स्वयं भगवान भी इन बुज़दिलो से इस मामलेमें बहस करने की भूल से भी चेष्टा न करेंगे। यह दो महाशय अपने क्षेत्र से जुडी हुई इसी बेवकूफी का उत्कृष्ट उदाहरण है।
गोदीजी अपने आप को जनता का प्रधान सेवक बतलाते है। यद्यपि एक सेवक के क्या गुण होने चाहिए इससे यह महाशय अभी पूर्णतः अवगत नहीं लगते। एक अच्छा सेवक पहले तो अपने मालिक की बात ध्यान लगाकर सुनता है, फिर उसे समझने का प्रयास करता है और अंत में पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्य का पालन करने का प्रयास करता है। जनतंत्र ( Democracy ) में जनता मालिक है और चुने हुए नेतागण कार्यवाहक है। उल्टा यहाँ तो जनता की बात को सुनना तो दूर यह महाशय अपने मन की बातों को सुनाने में लगे रहते है। इनके भक्तगण मानते है की इस अवतारपुरुष से पहले इस भूखंड का अस्तित्व ही नहीं था। यदि कोई देश झूठ की प्रतिष्ठा अपने सर्वोच्च स्थान पर करे तो उस देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य की गति का अनुमान करना कठिन नहीं होगा।
एक खूबसूरत अभिनेता देश के कानून से परे होता है इसका जीताजागता सबूत है हमारे प्यारे सल्लु मिया। जब भी कोई शो में जाते है, मंदबुध्दि बालक-बालिकाएं इनको आलिंगन में लेना चाहती है। जहा इन्हे हथकड़ी पहनानेकी पुलिस की हिम्मत नहीं तो प्यारे बच्चों का क्या कसूर। इनके आशक युवक हाथ में एक विचित्र तावीज पहनते है जो इतना बड़ा होता है की आसानी से गले का हार बन सके। लेकिन जहा यह खड़े होते है वहां दिमाग लगाना वर्जित माना जाता है। वैसे तो जब युवतियां किसी पर मोहित हो जाती है तो फिर कभी अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल नहीं करती, फिर भी कुछ कुमारिकाये इनका “कैरेक्टर ढीला” जान अपना ऐश्वर्य बचाने में सफल हुई है। लेकिन अगर कोई इनके कैफ में घुल गई तो फिर उनके लिए ‘टाइगर’ का ख्वाब हमेशा ज़िंदा रहता है। वैसे तो जिनकी ट्यूबलाइट जली नहीं होती वही इनके चरणस्पर्श करने को उन्मादित होते है पर मेरे कुछ मित्रो से मुझे डांट न खानी पड़े इसलिए इस विषय पर में कुछ अपवाद की गुंजाईश रखता हूँ।
इन दोनों महाशयों का इस देश की जनता की बेवकूफि और मंदबुध्दि पर अटूट विश्वास है। मालिक कुछ भी फेंके, कुत्ता उसे पकड़ ही लेता है, ऐसे ही आप भी ‘अच्छे दिन’की हड्डी को चबाते जाएं और कमज़ोर फिल्मों पर सैंकड़ों करोड़ लुटाएं जाए। पहले चेतावनी दे चूका हूँ की दिमाग चलाना सबके बस की बात नहीं है और इसी बजह से यह आप पे लदा हुआ क़र्ज़ है, कृपया इसे ईमानदारी से भरे। 😉